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अग्ने॒ शर्ध॑न्त॒मा ग॒णं पि॒ष्टं रु॒क्मेभि॑र॒ञ्जिभिः॑। विशो॑ अ॒द्य म॒रुता॒मव॑ ह्वये दि॒वश्चि॑द्रोच॒नादधि॑ ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agne śardhantam ā gaṇam piṣṭaṁ rukmebhir añjibhiḥ | viśo adya marutām ava hvaye divaś cid rocanād adhi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अग्ने॑। शर्ध॑न्तम्। आ। ग॒णम्। पि॒ष्टम्। रु॒क्मेभिः॑। अ॒ञ्जिभिः॑। विशः॑। अ॒द्य। म॒रुता॑म्। अव॑। ह्व॒ये॒। दि॒वः। चि॒त्। रो॒च॒नात्। अधि॑ ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:56» मन्त्र:1 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:19» मन्त्र:1 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

विद्वानों के उपदेश से मनुष्य और वायु के गुणों को जानकर फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वन् ! जैसे मैं (रुक्मेभिः) प्रकाशमान सुवर्ण आदि वा (अञ्जिभिः) सुन्दर पदार्थों से (मरुताम्) मनुष्यों के (पिष्टम्) अवयवीभूत (शर्धन्तम्) बलवान् (गणम्) समूह को (आ) सब ओर से (ह्वये) पुकारता हूँ और (अद्य) आज (दिवः) प्रकाशमान (रोचनात्) प्रीति के विषय से (चित्) भी (विशः) मनुष्यों को (अधि) ऊपर के भाव में (अव) अत्यन्त पुकारता हूँ, वैसे आप भी आचरण करिये ॥१॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जो मनुष्य वायु और मनुष्यों के गुणों को जानते हैं, वे सत्कार करनेवाले होते हैं ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्वदुपदेशेन मनुष्यगुणान् वायुगुणान् विदित्वा पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! यथाऽहं रुक्मेभिरञ्जिभिर्मरुतां पिष्टं शर्धन्तं गणमाह्वयेऽद्य दिवो रोचनाच्चिद्विशोऽध्यव ह्वये तथा त्वमप्याचर ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) विद्वन् (शर्धन्तम्) बलवन्तम् (आ) समन्तात् (गणम्) समूहम् (पिष्टम्) अवयवीभूतम् (रुक्मेभिः) रोचमानैः सुवर्णादिभिर्वा (अञ्जिभिः) कमनीयैः (विशः) (अद्य) (मरुताम्) मनुष्याणाम् (अव) (ह्वये) शब्दयेयम् (दिवः) प्रकाशमानात् (चित्) अपि (रोचनात्) रुचिविषयात् (अधि) उपरिभावे ॥१॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपालङ्कारः। ये पुरुषा वायूनां मनुष्याणाञ्च गुणान् जानन्ति ते सत्कर्त्तारो भवन्ति ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात विद्वान व वायूच्या गुणाचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे वायू व माणसांच्या गुणांना जाणतात ती सत्कार करण्यायोग्य असतात. ॥ १ ॥